कमलेश्वर की कहानियाँ
राजा निरबंसिया
''एक राजा निरबंसिया थे”—माँ कहानी सुनाया करती थीं। उनके आसपास ही चार-पाँच बच्चे अपनी मुठ्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढ़ाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुंदर-सा चौक पुरा होता, उसी चौक पर मिट्टी की छः ग़ौरें रखी जातीं, जिनमें
मांस का दरिया
जुगनू की तबीअत इन दिनों कुछ नासाज़ सी है। पर काम नहीं करेगी तो चलेगा कैसे? इस बीच नियमित ग्राहकों के अलावा एक झोले वाला आदमी भी उसके पास आने लगा है। वह आदमी है मदनलाल। इस बीच बीमारी बढ़ती है, पर कुछ समय बाद मजबूरी जुगनू को दुबारा इस पेशे में आने के लिए
खोई हुई दिशाएँ
सड़क के मोड़ पर लगी रेलिंग के सहारे चंदर खड़ा था। सामने दाएँ-बाएँ आदमियों का सैलाब था। शाम हो रही थी और कनॉट प्लेस की बत्तियाँ जगमगाने लगी थीं। थकान से उसके पैर जवाब दे रहे थे। कहीं दूर आया-गया भी तो नहीं, फिर भी थकान सारे शरीर में भरी हुई थी। दिल और
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere