जैनेंद्र कुमार का आलोचनात्मक लेखन
उपन्यास में वास्तविकता
कलकत्ते में गुजराती भाषा-भाषियों का एक साहित्य-समाज है। हर पखवाड़े वे लोग मिलते हैं। इधर एक उपन्यास मिल-जुल कर पूरा किया जा रहा है। उसका आरंभ एक सदस्य ने किया, अगला खंड दूसरे ने लिखा और सुनाया, इस तरह सात या आठ बार में वह उपन्यास पूरा होगा। और उतने ही
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere