हरिशंकर परसाई के संस्मरण
मुक्तिबोध : एक संस्मरण
भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था- उम्र भर जी के भी न जीने का अंदाज़ आया ज़िंदगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया जो मुक्तिबोध को निकट से देखते रहे हैं, जानते हैं कि दुनियावी अर्थों
आँगन में बैंगन
मेरे दोस्त के आँगन में इस साल बैंगन फल आए हैं। पिछले कई सालों से सपाट पड़े आँगन में जब बैंगन का फल उठा तो ऐसी ख़ुशी हुई जैसे बाँझ को ढलती उम्र में बच्चा हो गया हो। सारे परिवार की चेतना पर इन दिनों बैंगन सवार है। बच्चों को कहीं दूर पर बकरी भी दिख जाती
मुक्तिबोध: एक संस्मरण
भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था- उम्र भर जी के भी न जीने का अंदाज़ आया ज़िंदगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज़ आया जो मुक्तिबोध को निकट से देखते रहे हैं, जानते हैं कि दुनियावी अर्थों
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere