बलराज साहनी के यात्रा वृत्तांत
पाकिस्तान का सफ़र
दिल्ली, 6 अक्टूबर, 1962 पाकिस्तान की सैर का प्रोग्राम बनाते समय यह ध्यान नहीं आया कि उसका प्रभाव मेरी बूढ़ी माँ पर क्या पड़ेगा! उन्हें मेरा वहाँ जाना बिलकुल पसंद नहीं। मैं कहता हूँ, 'माता जी, ज़रा सोचिए तो सही, मैं पिंडी जाऊँगा, भेरा जाऊँगा, अपने
यासनाया पोल्याना
ताल्स्ताय जैसे महान व्यक्ति का ख़याल आते ही मन में से छोटे-छोटे संकुचित क़िस्म के विचार निकल जाते हैं, और मन ईर्ष्या-द्वेष से छुटकारा पाकर ऊँची उड़ान भरने लगता है। ताल्स्ताय ने संसार के सर्वोत्तम उपन्यास लिखे हैं। उनके विचारों ने गाँधी जी जैसे महान व्यक्ति
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere