पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के निबंध
प्रेम और विवाह की समस्या
यह तो स्पष्ट है कि समाज की गति के साथ साहित्य भी गतिशील होता है। जो सच्चा साहित्यकार होता है, उसकी वाणी में युग की वाणी रहती है। ऐसे साहित्यकारों की रचनाओं में समस्त देश की आत्मा प्रस्फुट हो जाती है। उनके स्वर में देश की उच्चतम आकांक्षा की ध्वनि निकलती
क्यों लिखूँ?
मैंने यह सोचा है कि अब मैं अपनी बातें लिखा करूँ। उनमें मेरे कर्म-जगत् के साथ मेरे भाव जगत् की भी चर्चा हो। सभी के पास यही तो एक विषय है जो दूसरों के लिए अपूर्व है। मेरा जीवन मेरा ही जीवन है। मैंने जो कुछ अनुभव किया है, वह अन्य के लिए संभव नहीं है। क्षुद्र
सरस्वती के 60 वर्ष
जनवरी सन् 1900 में ‘सरस्वती’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ। उस समय मैं 6 वर्ष का था। उसके 12 अंक निकल जाने के बाद मेरे पिता ने एक साथ वे 12 अंक मँगवाए। तब तक मुझे हिंदी का अक्षर-ज्ञान अच्छी तरह हो गया था। ‘सरस्वती’ के वे अंक मेरे समान बालकों के लिए भी विशेष
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere