सिस्टम पर कहानियाँ

'सिस्टम ही ख़राब है'

के आशय और अभिव्यक्ति में शासन-व्यवस्था या विधि-व्यवस्था पर आम-अवाम का असंतोष और आक्रोश दैनिक अनुभवों में प्रकट होता रहता है। कई बार यह कटाक्ष या व्यंग्यात्मक लहज़े में भी प्रकट होता है। ऐसे 'सिस्टम' पर टिप्पणी में कविता की भी मुखर भूमिका रही है।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere