सरस्वती पर दोहे

सरस्वती विद्या की देवी

हैं। उनकी स्तुति और प्रशंसा में प्राचीन समय से ही काव्य-सृजन होता रहा है। विद्यालयों में प्रार्थना के रूप में निराला विरचित ‘वर दे, वीणावादिनी वर दे!’ अत्यंत लोकप्रिय रचना रही है। समकालीन संवादों और संदर्भों में भी सरस्वती विषयक कविताओं की रचना की गई है।

अंग ललित सित-रंग पट, अंग राग अवतंस।

हंस-बाहिनी कीजियै, बाहन मेरौ हंस॥

अपने सुंदर अंगों पर श्वेत वस्त्र धारण किए हुए और अपने मस्तक की माँग में सिंदूर लगाए हुए हे हंसवाहिनी सरस्वती! आप मेरे मन रूपी हंस को ही अपना वाहन बनाइए। अर्थात् हे भगवती सरस्वती! आप मेरे मन में ही वास कीजिए।

मतिराम

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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