छायावाद और प्रगतिवाद के बाद कोई ऐसी व्यापक मानव-आस्था मैदान में नहीं आई, जो जीवन को विद्युन्मय कर दे—मेरा मतलब साहित्यिक मैदान से है।
प्रगतिवादी एक-क्षेत्रीय था, यंत्रवत् था। वह एक विशेष काल में मध्यवर्ग की एक विशेष मनोवैज्ञानिक दशा का ही सूचक था।
छायावादी प्रवृत्ति के विरुद्ध प्रगतिवाद का जो महान् आंदोलन उठ खड़ा हुआ, वह एक विशेष काल में मध्यवर्ग की एक विशेष मनोवैज्ञानिक स्थिति का द्योतक है।
प्रगतिवादी काव्य राष्ट्रीय काव्य है।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere