यह नियम है कि मनुष्य अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करे। कुछ सौ वर्षों में यह मानव जाति के लिए उतना ही स्वाभाविक होना चाहिए जितना कि साँस लेना या सीधा चलना, पर अगर मनुष्य इसे नहीं सीखता है तो वह तबाह हो जाएगा।
अगर हम अपने पड़ोसियों का स्वमान नहीं रखते, चाहे वे गिनती में कितने ही थोड़े क्यों न हों, तो हम ख़ुद स्वमान रखने का दावा नहीं कर सकते।
प्रत्येक व्यक्ति यह चिंता करता है कि उसका पड़ोसी उसे न ठग ले। किंतु एक दिन ऐसा आता है जब वह यह चिंता करना प्रारंभ करता है कि कहीं वह अपने पड़ोसी को न ठग ले। तब सब ठीक चलता है। अब वह अपनी बाजार-गाड़ी को सूर्य रथ में परिवर्तित कर चुका है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere