होली पर सवैया

रंग-उमंग का पर्व होली

कविताओं में व्यापक उपस्थिति रखता रहा है। होली में व्याप्त लोक-संस्कृति और सरलता-सरसता का लोक-भाषा की दहलीज़ से आगे बढ़ते हुए एक मानक भाषा में उसी उत्स से दर्ज हो जाना बेहद नैसर्गिक ही है। इस चयन में होली और होली के विविध रंगों और उनसे जुड़े जीवन-प्रसंगों को बुनती कविताओं का संकलन किया गया है।

होरी की हौंस हमें ना कछू

ठाकुर बुंदेलखंडी

फूल छरी तरवार चली

बख्शी हंसराज

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere