धूल पर कविताएँ

इस चयन में प्रस्तुत

‘कैसी धूल भरी निर्जनता छाई हुई है चारों ओर’ और ‘किसी चीज़ को रखने की जगह बनाते ही धूल की जगह भी बन जाती’ जैसी कविता में व्यक्त अभिव्यक्तियों के साथ ही आगे बढ़ने की सहूलत लें तो धूल का ‘उपेक्षित लेकिन उपस्थित’ अस्तित्व हमें स्वीकार कर लेना होगा। इस संकलन में प्रस्तुत हैं—धूल के बहाने व्यक्त कुछ बेहतरीन कविताएँ।

धूल की जगह

महेश वर्मा

शहर

नीलेश रघुवंशी

धूल

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

धूल, गंध और पतंगें

अशोक कुमार पांडेय

हँसा बहुत ज़ोर से

शैलेंद्र दुबे

रास्ते की धूल

नीलबीर शर्मा शास्त्री

रंग का फ़र्क़

शिवमंगल सिद्धांतकर

मैं आऊँगा

पंकज सिंह

क्षितिज पर धूल

विजय बहादुर सिंह

धूल

शचींद्र आर्य

धूल

लाल्टू

एक ऋचा धूल के लिए

रति सक्सेना

गर्द

आतम हमराही

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere