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विनोद कुमार शुक्ल

1937 | राजनाँदगाँव, छत्तीसगढ़

सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।

सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।

विनोद कुमार शुक्ल की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 31

उद्धरण 71

अधिकतर अज्ञानता के सुख-दुःख की आदत थी। ज्ञान के सुख-दुःख बहुतों को नहीं मालूम थे। जबकि ज्ञान असीम अटूट था। ज्ञान सुख की समझ देता था पर सुख नहीं देता था।

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गंदगी वहाँ है जहाँ सफ़ाई और संपन्नता है, वह अहाता है जहाँ से फूलों की ख़ुशबू आती है और घास पर बैठे हुए वे लोग हैं जो फ़ुर्सत से बैठ गए हैं।

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स्पर्श का सारा गुण अनुमान में भी होना चाहिए। जिसका अनुमान लगा रहे हैं उसे सचमुच स्पर्श कर रहे हैं। सच का अनुमान लगा रहे हैं और सच को स्पर्श कर रहे हैं। झूठ का अनुमान लगाते हैं और झूठ का स्पर्श करते हैं।

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“जितनी बुराइयाँ हैं वे केवल इसलिए कि कुछ बातें छुपाई नहीं जाती और अच्छाइयाँ इसलिए हैं कि कुछ बातें छुपा ली जाती हैं।”

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चंद्रमा, सूरज, तारे, आकाश, घर की चीज़ों की तरह थे। चंद्रमा सूरज शाश्वत होने के बाद भी इधर-उधर होते थे।

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चित्र शायरी 1

 

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