त्रिलोचन के लेख
रचना-आलोचना
रचना और आलोचना में तत्त्वतः अंतर नहीं है। दोनों की समृद्धि जीवन के व्यापक अनुभव से होती है। यह अनुभव समकालिक भूमि पर विशिष्ट होता है। विशिष्टता का निद्धरण दूसरे समवर्ती अनुभवों की राशि पर स्थापित होता है। समवर्ती अनुभव अपनी अनन्तता और व्यापकता में बाह्यतः
रचनात्मक और सामाजिक दायित्व
रचनाकार अपने समाज का एक सदस्य होता है। यदि समाज के दूसरे सदस्यों के समान उसके भी मानदंड हुए तो औरों की दृष्टि में उसे उत्तरदायित्वपूर्ण माना जाएगा। लेकिन महत्त्वपूर्ण रचनाओं का निर्माण असंतोष के कारण होता है। और यह असंतोष सामाजिक मानदंड और जीवन की विषमताओं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere