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स्वरूपदास

रीतिकालीन अलक्षित कवि। महाभारत के पद्यानुवादक।

रीतिकालीन अलक्षित कवि। महाभारत के पद्यानुवादक।

स्वरूपदास के दोहे

शरण युधिष्ठिर कृष्ण की, अथवा भजि नहिं जाय।

जो इंद्रादि सहाय तोहूँ, पितॄन दैहूँ मिलाय॥

प्रात अस्त लों ना रहे, जयद्रथ वा मम प्रान।

दोउ रहै तो होहु भल, मोकों नरक निदान॥

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