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संत शिवदयाल सिंह

1818 - 1878 | आगरा, उत्तर प्रदेश

'राधास्वामी सत्संग' के प्रवर्तक। सरस और हृदयग्राह्य वाणियों के लिए प्रसिद्ध।

'राधास्वामी सत्संग' के प्रवर्तक। सरस और हृदयग्राह्य वाणियों के लिए प्रसिद्ध।

संत शिवदयाल सिंह की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 35

जीव जले विरह अग्नि में, क्यों कर सीतल होय।

बिन बरषा पिया बचन के, गई तरावत खोय॥

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बैठक स्वामी अद्भुती, राधा निरख निहार।

और कोई लख सके, शोभा अगम अपार॥

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क्या हिन्दू क्या मुसलमान, क्या ईसाई जैन।

गुरु भक्ती पूरन बिना, कोई पावे चैन॥

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मैं तड़पी तुम दरस को, जैसे चंद चकोर।

सीप चहे जिमि स्वाति को, मोर चहे घन घोर॥

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गुरु भक्ति दृढ़ के करो, पीछे और उपाय।

बिन गुरु भक्ति मोह जग, कभी काटा जाय॥

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सबद 27

सोरठा 1

 

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