मिथिलेश्वर की कहानियाँ
हरिहर काका
हरिहर काका के यहाँ से मैं अभी-अभी लौटा हूँ। कल भी उनके यहाँ गया था, लेकिन न तो वह कल ही कुछ कह सके और न आज ही। दोनों दिन उनके पास मैं देर तक बैठा रहा, लेकिन उन्होंने कोई बातचीत नहीं की। जब उनकी तबीयत के बारे में पूछा तब उन्होंने सिर उठाकर एक बार मुझे
हत्यारों की वापसी
रात के बारह बज रहे हैं। तेगा, सिगू और गनपत दबे पाँव आगे बढ़े जा रहे हैं। वे शहर की उस मुख्य सड़क को पार कर चुके हैं, जो रात-भर चलती रहती है। वे शहर के उन स्थानों और मुहल्लों को लाँघ चुके हैं, जहाँ रात होती ही नहीं—बिजली की दूधिया रोशनी और सरगर्मी बनी
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere