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मैथिलीशरण गुप्त

1886 - 1964 | झाँसी, उत्तर प्रदेश

राष्ट्रकवि के रूप में समादृत कवि। ‘भारत भारती’ उल्लेखनीय काव्य-कृति।

राष्ट्रकवि के रूप में समादृत कवि। ‘भारत भारती’ उल्लेखनीय काव्य-कृति।

मैथिलीशरण गुप्त की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 70

संस्मरण 1

 

काव्य खंड 68

उद्धरण 7

सच्चा धन तो है बस धर्म, जो हिंदू का जीवन मर्म।

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दोषदर्शी होता है द्वेष।

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धन-रूपी फल का परिश्रम ही मूल है।

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जो है आत्मविश्वासी वही तो अस्तिवादी है।

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सिद्ध एक पुरुषार्थ हमारी भुक्ति-मुक्ति का मंत्र।

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