मुझे हृदय की भावनाओं की पवित्रता तथा कल्पना की सत्यता पर ही पक्का विश्वास है, अन्य पर नहीं—कल्पना जिसे सौंदर्य के रूप में ग्रहण करती है वह सत्य ही होना चाहिए चाहे पहले वह अस्तित्व में था या नहीं।
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काव्य को अपनी सुंदर अतिशयता से चकित करना चाहिए, न कि विलक्षणता से। पाठक को काव्य उसके अपने ही विचारों का शब्दरूप लगना चाहिए और लगभग एक स्मृति जैसा ही प्रतीत होना चाहिए।
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उत्सुक अंधेपन में देखने की शक्ति तिगुनी होती है।
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प्राकृतिक दृश्य सुंदर है किंतु मानव प्रकृति सुंदरतर है।
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सुख प्रायः हमसे मिलकर चल देते हैं, पर दुःख निर्दयतापूर्वक चिपक जाते हैं।
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