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जालंधर नाथ

जालंधर नाथ की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 1

थोड़ा खाता है तो भूख के मारे कल्पना-जल्पना करता है, अधिक खाता है तो रोगी हो जाता है। कोई विरला योगी ही दोनों पक्षों की संधि का विचार करता है (अर्थात् उचित आहार करता है)।

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