गवरी बाई की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 8
बन में गये हरि ना मिले, नरत करी नेहाल।
बन में तो भूंकते फिरे, मृग, रोझ, सीयाल॥
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अड़सठ तीरथ में फिरे, कोई बधारे बाल।
हिरदा शुद्ध किया बिना, मिले न श्री गोपाल॥
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गवरी चित्त तो है भला, जो चेते चित मांय।
मनसा, वाचा, कर्मणा, गोविंद का गुन गाय॥
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छापा तिलक बनाय के, परधन की करें आसा।
आत्मतत्व जान्या नहीं, इंद्री-रस में माता॥
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गवरी चित में चेतिऐ, लालच लोभ निवार।
सील संतोष समता ग्रहे, हरि उतारे पार॥
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