गरीबदास की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 6
साहब तेरी साहबी, कैसे जानी जाय।
त्रिसरेनू से झीन है, नैनों रहा समाय॥
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साहब मेरी बीनती, सुनो गरीब निवाज।
जल की बूँद महल रचा, भला बनाया साज॥
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भगति बिना क्या होत है, भरम रहा संसार।
रत्ती कंचन पाय नहिं, रावन चलती बार॥
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पारस हमारा नाम है, लोहा हमरी जात।
जड़ सेती जड़ पलटिया, तुम कूँ केतिक बात॥
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सुरत निरत मन पवन कूँ, करो एकत्तर यार।
द्वादस उलट समोय ले, दिल अंदर दीदार॥
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