दयाबाई की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 77
जो पग धरत सो दृढ़ धरत, पग पाछे नहिं देत।
अहंकार कूँ मार करि, राम रूप जस लेत॥
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कायर कँपै देख करि, साधू को संग्राम।
सीस उतारै भुइँ धरै, जब पावै निज ठाम॥
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आप मरन भय दूर करि, मारत रिपु को जाय।
महा मोह दल दलन करि, रहै सरूप समाय॥
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मनमोहन को ध्याइये, तन-मन करि ये प्रीत।
हरि तज जे जग में पगे, देखौ बड़ी अनीत॥
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सूरा सन्मुख समर में, घायल होत निसंक।
यों साधू संसार में, जग के सहैं कलंक॥
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