Font by Mehr Nastaliq Web

कोड़े पन्द्रा, कोड़ इकीसां

koDe pandra, koD ikisan

जसनाथ

अन्य

अन्य

जसनाथ

कोड़े पन्द्रा, कोड़ इकीसां

जसनाथ

और अधिकजसनाथ

    कोड़े पन्द्रा, कोड़ इकीसां, कोड़ सताइसां, कोड़ छत्तीसां,

    चौहां जुगां री बांध’र भार।

    कोड़ निन्नाणवै टोटै दीनी, इत्ता चल्या मन आई।

    जांनै कड़कड़ करता कीड़ा खासीं, बाटै जैंवर बधाई।

    कोई कै’वै म्हारो काको पितो, कोई कै’वै म्हारो भाई।

    पापां हुंता पूत विछोया, धीयां हुवती माई।

    कोई कै'वै ईसर म्हांही साचा, देव तणा विड़दाई।

    वाचा बधती उमर घटती, बांचै वेद सुवाई।

    इम्रत सिध है गोरखनाथो, जां द्यै जां मान बड़ाई।

    ब्रह्मा विष्णु काजी बांचै, बांचै वेद सुवाई।

    कोड़ां पांचां, कोड़ां सातां, कोड़ा नौवां, कोड़ा बारां,

    कोड़ां तेतीसां सुरग पहुंचा, ऐता गुरु फरमाई।

    तेतीसां से मांझी (है) निकळंकी, निकळंकजी नै मान बड़ाई।

    गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ(जी) बांच सुणाई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 168)
    • संपादक : सूर्य शंकर पारेक
    • रचनाकार : जसनाथ
    • प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
    • संस्करण : 1996

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए