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रस रे निर्गुन राग से

ras re nirgun raag se

मलूकदास

अन्य

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मलूकदास

रस रे निर्गुन राग से

मलूकदास

और अधिकमलूकदास

    रस रे निर्गुन राग से, गावै कोइ जाग्रत जोगी।

    अलग रहै संसार से, सो इस रस का भोगी॥

    भरम करम सब छांड़, अनूठा यह मत पूरा।

    सहजै धुन लागी रहै, बाजै अनहद तूरा॥

    लहरें उठती ज्ञान की, बरसे रिमझिम मोती।

    गगन गुफा में बैठ के देखै जगमग जोती॥

    सिव नगरी आसन किया, सुन ध्यान लगाया।

    तीनों दसा बिसार के, चौथा पद पाया॥

    अनुभय उपजा भय गया, हद तज बेहद लागा।

    घट उजियारा होइ रहा, जब आतम जागा॥

    सब रंग खेले सम रहै, दुबिधा मनहिं आनै।

    कह मलूक सोइ रावला, मेरे मन मनै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत कवि मलूकदास (पृष्ठ 76)
    • संपादक : त्रिलोकी नारायण दीक्षित
    • रचनाकार : मलूकदास
    • प्रकाशन : अखिल भारतीय संत मलूकदास स्मारक समिति, प्रयाग
    • संस्करण : 1965

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