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पीआ राम रसु पीआ रे

pii.a raam rasu pii.a re

रैदास

अन्य

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रैदास

पीआ राम रसु पीआ रे

रैदास

और अधिकरैदास

    पीआ राम रसु पीआ रे॥टेक॥

    भरि भरि देवै सुरति कलाली, दरिआ दरिआ पीना रे।

    पीवतु पीवतु आपा जग भूला, हरि रस मांहि बौराना रे॥

    दर परि बिसरि गयौ रैदास, जनमनि सद मतवारी रे।

    पलु पलु प्रेम पियाला चालै, छूटे नांहि खुमारी रे॥

    मैं राम रूपी रसायन पी रहा हूँ। सुरति-कलाली मुझे रामरस से भर−भर कर प्याला दे रही है और मैं मानो इस रस का दरिया ही पीता जा रहा हूँ। इस रस का पान करते−करते मैं अपने अहंभाव और संसार को भूलकर मतवाला हो रहा हूँ। रैदास कहते हैं कि इस रस को पीने से मैं अपना घर−द्वार भूलकर जन्मों-जन्मों के लिए उस सच्ची ख़ुमारी में मस्त हो गया हूँ। लगातार प्रेम−रस का प्याला पीया जा रहा है जिसकी ख़ुमारी नहीं उतरती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रैदास ग्रंथावली (पृष्ठ 331)
    • रचनाकार : डॉ. जगदीश शरण
    • प्रकाशन : साहित्य संस्थान
    • संस्करण : 2011

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