मैं किसी रपटीली प्रजाति में बदल जाना चाहती हूँ

main kisi raptili prajati mein badal jana chahti hoon

अनुपम सिंह

अनुपम सिंह

मैं किसी रपटीली प्रजाति में बदल जाना चाहती हूँ

अनुपम सिंह

मैं यहाँ एकांत में

जब तुम्हारी प्रतीक्षा ख़त्म होने का इंतिज़ार कर रही हूँ

मेरे दीवार पर दो छिपकलियाँ एक दूसरे का पीछा करती

धीरे-धीरे कसती जा रही हैं एक दूसरे को

खिड़की के पीछे शीशे से दिखते दो कबूतर

जैसे खींच लेना चाहते हैं एक दूसरे की नाज़ुक जीभ

जब मेरी आँखें क़ैद हैं इस दीवार में

और खिड़की तक का ही दृश्य देखने में सक्षम हैं

तुम्हीं बताओ,

भला! मैं अपनी आँखें कहाँ टाँग दूँ

मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में

इस बंद कमरे में दहक रही हूँ सिगार की आग-सी

मैं अपना घर फूँक भेंटना चाहती हूँ तुम्हें

तुम मुझे आमंत्रित नहीं करोगे

कि हम साथ-साथ डाल सकें इस दहकती आग में

अपनी हविषा

क्या नहीं स्वीकार करना चाहोगे मेरा आतिथ्य

मैं रात्रि के किसी पहर में मिलना चाहती हूँ तुमसे

तुम मेरे लिए अपने मध्य कक्ष में

रसभरियाँ नहीं सजाओगे?

मैं छिपकलियों सरीखी

किसी रपटीली प्रजाति में बदल जाना चाहती हूँ

यह औरत होने से अधिक सुखदायी है

स्रोत :
  • रचनाकार : अनुपम सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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