सुअरबाड़े में हुर हुर*

suarbaDe mein hur hur*

संजय चतुर्वेदी

संजय चतुर्वेदी

सुअरबाड़े में हुर हुर*

संजय चतुर्वेदी

 

एक सुअर बोलता है हुर 
दूसरा बोलता है हुर हुर  
एक तीसरा सुअर 
जो बाक़ी दोनों से ज़्यादा संवेदनशील मन जाता है 
धीरे से सरकाता है हुर हुर हुर

एक कनिष्ठ सुअर 
जो सुअर-संहिता को चकमा देकर आया है सुअरबाड़े में 
कुर्सी तोड़कर फेंकता है वरिष्ठ सुअरों की तरफ़ 
एक सुअर के छप गए हैं पोस्टर 
एक सुअर पाँचवीं मंज़िल से छलाँग लगाता है 
और सात घंटे तक नीचे नहीं गिरता 
एक सुअर में है समय का धैर्य 
दूसरे में है प्रलय का वीर्य 
बस अब और जगह नहीं है मंच पर 
पैंतीस सुअर मिलकर छत्तीसवें सुअर को नीचे फेंकते हैं 

एक सुअर को घोषणा करनी पड़ती है 
कि वह कोई चूहा नहीं है 
एक सुअर प्रेस कॉन्फ्रेंस में देश से पूछता है 
तुम्हारी हैसियत क्या है
एक संविधान के निर्माताओं की क़समें खाने वाला 
संविधान पर थूकते हुए छाती ठोकता है 
उसके अपराध ही उसके आजीवन पापों की अग्रिम ज़मानत के लिए काफ़ी हैं 
सुअरों के एक झुंड का मज़हब और एक दूसरे झुंड का इंक़लाब 
रहता है सदा ख़तरे में 
एक सुअर को अचानक याद आता है 
उसने लिखी थी कोई प्रेम कविता 
एक शरबती आँखों और सुनहरे पंखों वाली बलखाती सुअर
अंतरराष्ट्रीय संबंधों और शामी कबाब पर कुछ मिस्लेनियस-सा बोलती है 
पान चबाता एक सुअर
जो अभी-अभी परंपरा से निकला है  
करता है परमपिता की बात 
और पिच्च से थूकता है पुरखों की धरोहर पर 

दो तीन सुअर अचानक एथेनिक हो जाते हैं 
कुछ सांस्कृतिक और बौद्धिक सुअर 
मिलकर क़ब्ज़ा कर लेते हैं सारे वज़ीफ़ों पर 
हार किसी की भी हो 
जीत होती है उनकी 
एक सुअर पचास साल बाद बोलता है 
कि है तो यह सरासर झूठ और बेईमानी 
लेकिन आपको चंपू बनाने के लिए यह ज़ुरूरी था 
करोड़ों सुअर जो कभी दिखाई नहीं पड़ते 
पालते हैं सुअरबाड़े को अपनी हड्डियों से 
करोड़ों सुअर जिनका ज़िक्र नहीं सुअर-समग्र में 
सोचते हैं देश और समाज में छिपी ऊष्मा के बारे में 
एक माता सुअर भीषण जाड़े में ठिठुरती है अपने बच्चों के साथ 
सुअरबाड़े की जगर-मगर सड़कों पर।
_____________________
*ये घटनाएँ उस समाज में होती हैं जहाँ सुअरों को लेकर कोई मानव-सुलभ हिंसा नहीं है और सुअरों की भी बाक़ी प्राणियों जैसी ही मान-अपमान की स्थिति है।

स्रोत :
  • रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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