राष्ट्रीय भ्रष्टाचार महोत्सव

rashtriya bhrashtachar mahotsaw

अशोक चक्रधर

अशोक चक्रधर

राष्ट्रीय भ्रष्टाचार महोत्सव

अशोक चक्रधर

पिछले दिनों

राष्ट्रीय भ्रष्टाचार महोत्सव

मनाया गया,

सभी सरकारी संस्थाओं को

बुलाया गया।

भेजी गईं सभी को

निमंत्रण पत्रावली,

साथ में प्रतियोगिता की नियमावली।

लिखा था—

प्रिय भ्रष्टोदय!

आप तो जानते हैं

भ्रष्टाचार हमारे देश की

पावन, पवित्र, सांस्कृतिक विरासत है,

हमारी जीवन-पद्धति है

हमारी मजबूरी है

हमारी आदत है।

आप अपने

विभागीय भ्रष्टाचार का

सर्वोत्कृष्ट नमूना दिखाइए,

और उपाधियाँ तथा

पदक-पुरस्कार पाइए।

व्यक्तिगत उपाधियाँ हैं—

भ्रष्ट शिरोमणि, भ्रष्ट भूषण

भ्रष्ट विभूषण और भ्रष्ट रत्न

और यदि सफल हुए

आपके विभागीय प्रयत्न,

तो कोई भी पदक, जैसे :

स्वर्ण गिद्ध

रजत बगुला

या काँस्य कउआ दिया जाएगा,

सांत्वना-पत्र और

विस्की का

एक-एक पउआ दिया जाएगा।

प्रविष्टियाँ भरिए

और न्यूनतम योग्यताएँ

पूरी करते हों तो

प्रदर्शन अथवा प्रतियोगिता-खंड में

स्थान चुनिए।

तो कुछ तुले

कुछ अनतुले भ्रष्टाचारी

कुछ कुख्यात

निलंबित अधिकारी

जूरी के सदस्य बनाए गए,

मोटी रक़म देकर बुलाए गए।

मुर्ग़ तंदूरी, शराब अँगूरी

और विलास की सारी चीज़ें ज़रूरी

जुटाई गईं,

और निर्णायक-मंडल

यानी की जूरी

को दिलाई गईं।

एक हाथ से

मुर्ग़े की टाँग चबाते हुए,

और दूसरे से

चाबी की छल्ला घुमाते हुए,

जूरी का एक सदस्य बोला—

मिस्टर भोला!

यू नो,

हम ऐसे करेंगे

या जी चाहे जैसे करेंगे,

बट बाय वे

भ्रष्टचार नापने का

पैमाना क्या है

हम फ़ैसला कैसे करेंगे?

मिस्टर भोला ने

सिर हिलाया,

और हाथों को घूरते हुए फ़रमाया—

चाबी के छल्ले को

टेंट में रखिए

और मुर्ग़े की टाँग को

प्लेट में रखिए

फिर सुनिए मिस्टर मुरारका!

भ्रष्टाचार होता है

चार प्रकार का।

पहला—नज़राना!

यानी नज़र करना, लुभाना।

ये काम होने से पहले

दिया जाने वाला ऑफ़र है,

और पूरी तरह से

देने वाले की

श्रद्धा और इच्छा पर निर्भर है।

दूसरा—शुकराना!

इसके बारे में क्या बताना।

ये काम होने के बाद

बतौर शुक्रिया दिया जाता है

इसमें लेने वाले को

आकस्मिक प्राप्ति के कारण

बड़ा मज़ा आता है।

तीसरा—हक़राना!

यानी हक़ जताना!

हक़ बनता है जनाब,

बँधा-बँधाया हिसाब

आपसी सेटिलमेंट

कहीं दस परसेंट

कहीं बीस परसेंट

लेकिन

पेमेंट से पहले पेमेंट।

चौथा—ज़बराना!

यानी ज़बर्दस्ती पान।

ये देने वाले की नहीं

लेने वाले की

इच्छा, क्षमता और शक्ति पर

डिपेंड करता है,

इसमें मना करने वाला

मरता है

क्योंकि लेने वाले के पास

पूरा अधिकार है,

दुत्कार है, फुँकार है, फटकार है।

दूसरी ओर

चीत्कार, हाहाकार

केवल मौन स्वीकार होता है,

इसलिए देने वाला

अकेले में रोता है।

तो यही भ्रष्टाचार का

सर्वोत्कृष्ट प्रकार है,

जो भ्रष्टाचारी

इसे कर पाए

उसे धिक्कार है।

नज़राना का एक पॉइंट

शुकराना के दो

हक़राना के तीन

और ज़बराना के चार,

हम भ्रष्टाचार को

नंबर देंगे इस प्रकार।

रात्रि का समय,

जब बारह पर गई सुई

तो प्रतियोगिता शुरू हुई!

सर्वप्रथम जंगल विभाग आया

जंगल अधिकारी ने बताया—

इस प्रतियोगिता के

सारे फ़र्नीचर के लिए

चार हज़ार चार सौ बीस पेड़

कटवाए जा चुके हैं,

और एक-एक सोफ़ा-सेट

जूरी के हर सदस्य के घर

पहले ही

भिजवाए जा चुके हैं।

हमारी ओर से

भ्रष्टाचार का यही नमूना है,

आप लोग सुबह जब

जंगल जाएँगे

तो स्वयं देखेंगे कि

जंगल का एक बड़ा हिस्सा

अब बिल्कुल सूना है।

अगला प्रतियोगी

पी.डब्ल्यू.डी. का,

उसने बताया अपना तरीक़ा

हम लैंड फ़िलिंग करते हैं

यानी ज़मीन के

निचले हिस्सों को

ऊँचा करने के लिए

मिट्टी भरते हैं।

हर बरसात में

मिट्टी बह जाती है।

जिस टीले से

हम मिट्टी लाते हैं,

या काग़ज़ों पर

लाया जाना दिखाते हैं,

यदि सचमुच हमने

उतनी मिट्टी को

डलवाया होता,

तो आपने उस टीले की जगह

पृथ्वी में

अमेरिका तक का आर-पार

गड्ढा पाया होता

लेकिन टीला

ज्यों-का-त्यों खड़ा है,

उतना ही ऊँचा है

उतना ही बड़ा है।

मिट्टी डली भी

और नहीं भी,

ऐसा नमूना

नहीं देखा होगा कहीं भी।

क्यू तोड़कर अचानक,

अंदर घुस आया

एक अध्यापक—

हुज़ूर,

मुझे आने नहीं दे रहे थे,

शिक्षा का भ्रष्टाचार

बताने नहीं दे रहे थे!

प्रभो!

एक जूरी मेंबर बोला—

चुप रहो।

चार ट्यूशन क्या कर लिए कि

ख़ुद को

भ्रष्टाचारी समझने लगे,

प्रतियोगिता में शरीक़ होने का

दम भरने लगे।

तुम क्वालीफ़ाई ही नहीं करते

बाहर जाओ,

नेक्स्ट, अगले को बुलाओ।

अब आया एक पुलिस का दरोग़ा

बोला—

हम हों

तो भ्रष्टाचार कहाँ होगा?

जिसे चाहें पकड़ लेते हैं

जिस चाहें रगड़ देते हैं।

हथकड़ी नहीं डलवानी

एक हज़ार ला,

जूते नहीं खाने

दो हज़ार ला।

पकड़वाने के पैसे

छुड़वाने के पैसे

ऐसे भी पैसे,

बिना पैसे

हम हिलें कैसे?

ज़मानत, तफ़्तीश, इन्वेस्टीगेशन,

इन्क्वायरी, तलाशी

या ऐनी सिचुएशन,

अपनी तो चाँदी है,

क्योंकि हर स्थिति बाँदी है।

डंडे का ज़ोर है,

क्योंकि डंडा कठोर है।

हम अपराध मिटाते नहीं हैं

अपराधों की फ़सल की

देखभाल करते हैं,

वर्दी और डंडे से

कमाल करते हैं।

फिर आए क्रमशः

एक्साइज़ वाले

स्लम वाले, कस्टम वाले

डी.डी.ए. वाले

टी.ए.डी.ए. वाले

रेल वाले, खेत वाले

हैल्थ वाले, वैल्थ वाले

पुरातत्व वाले, स्थापत्य वाले

रक्षा वाले, खाद्य वाले

ट्रांसपोर्ट वाले, एअरपोर्ट वाले,

सभी ने बताए

अपने-अपने घोटाले।

प्रतियोगिता पूरी हुई,

तो जूरी के एक सदस्य ने कहा—

देखो भई!

स्वर्ण गिद्ध तो

पुलिस विभाग को जा रहा है,

हाँ, रजत बगुले के लिए

पी.डब्ल्यू.डी.

सामने रहा है।

और ऐसा लगता है हमको,

कि काँस्य कउआ मिलेगा

एक्साइज़ या कस्टम को।

ये निर्णय-प्रक्रिया

चल ही रही थी कि

अचानक मेज़ फोड़कर,

धुएँ के बादल

अपने चारों ओर छोड़कर,

श्वेत धवल खादी में लक-दक

टोपी धारी

गरिमा महिमा उत्पादक

एक विराट व्यक्तित्व

प्रकट हुआ,

चारों ओर

रोशनी और धुआँ।

जैसे गीता में

भगवान श्रीकृष्ण ने

अपना विराट स्वरूप दिखाया

और महत्त्व बताया था

उतना पवित्र-पावन तो नहीं

पर कुछ-कुछ वैसा ही था नज़ारा,

विराट भ्रष्ट नेताजी ने

मेघ-मंद्र स्वर में उच्चारा—

मेरे हज़ारों मुँह

हज़ारों हाथ हैं,

हज़ारों पेट हैं

हज़ारों ही लात हैं।

नैनं छिन्दतिं पुलिसा-वुलिसा

नैनं दहति संसदा,

नाना विधानि रूपाणि

नाना हथकंडानि च॥

ये सब भ्रष्टाचारी

मेरे ही स्वरूप हैं,

मैं एक हूँ लेकिन मेरे

करोड़ों रूप हैं।

अहमपि नज़रानम्

अहमपि शुकरानम्

अहमपि हक़रानम्

ज़बरानम् सर्वमन्यते।

भ्रष्टाचारी मजिस्ट्रेट

रिश्वतख़ोर थानेदार

इंजीनियर

ओवरसीयर

रिश्तेदार, नातेदार!

मुझसे ही पैदा हुए

मुझमें ही समाएँगे,

पुरस्कार ये सारे मेरे हैं

मेरे पास आएँगे।

अचानक स्वर्ण गिद्ध

रज़त बगुला, काँस्य कउआ

अपने-अपने पंख

फड़फड़ाने लगे,

नेता जी पर

फूल बरसाने लगे।

जूरी के मेम्बरान पर भी

प्रसन्नता छाई,

उन्होंने मिलकर

नेता जी की एक आरती गाई—

अनेक रैली, अनेक थैली

अनेक ठाठम् बाटम् अनेक।

अनेक दारा, अनेक दारू

अनेक कुर्सी खाटम् अनेक।

अनेक बँगले, अनेक कोठी

अनेक फ़ार्मम् प्लाटम् अनेक।

अनेक डण्डम् अनेक गुण्डम्

अनेक लूटम् पाटम् अनेक।

अनेक बदलम्, दलम् अनेक

अनेक थूकस्य चाटम् अनेक।

अनेक चमचे, अनेक गुर्गे

अनेक सीढ़ी घाटम् अनेक।

अनेक जिह्वा, अनेक जेबम्

अनेक मारम् काट्म अनेक।

ओम् प्रचंडरूपा डंडानि नमो नमः

सर्वव्यापी गुंडानि नमो नमः

सर्वोपरि हथकंडानि नमो नमः

ओम् भ्रष्टमिंद भ्रष्टमदम्

भ्रष्टात् भ्रष्टमुदच्यते,

भ्रष्टस्य भ्रष्टमादय

भ्रष्टमेवावशिष्यते।

ओम् भ्रष्टं भ्रष्टं भ्रांति।

स्रोत :
  • पुस्तक : हास्य-व्यंग्य की शिखर कविताएँ (पृष्ठ 26)
  • संपादक : अरुण जैमिनी
  • रचनाकार : अशोक चक्रधर
  • प्रकाशन : राधाकृष्ण पेपरबैक्स
  • संस्करण : 2013

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