कुछ लड़कियों के पास घर नहीं होते

kuch laDakiyon ke pas ghar nahin hote

गगन गिल

गगन गिल

कुछ लड़कियों के पास घर नहीं होते

गगन गिल

कुछ लड़कियों के पास घर नहीं होते

ख़यालों में भी नहीं

भला ख़यालों में भी क्यों नहीं?

ख़यालों में उनके बसते हैं

आँगन में खेलते हुए बच्चे

अख़बार पढ़ता आदमी

लॉन की कुर्सी पर,

हर पल दिमाग़ में चढ़ती

रसोई की गंध—

फूल ही फूल भरे रहते हैं उनकी आँखों में

ख़यालों में

ख़यालों में लड़कियाँ

जानती हैं,

कोई तूफ़ान छू नहीं सकता

उनके बच्चों को,

उनके आदमी को

ख़यालों में उन्हें इत्मीनान रहता है

कि कोई बुरी छाया नहीं गुज़रती

उनके ख़यालों के घर से

ख़यालों के उनके घर में

कोई सपना अकेले देखता है,

झूठ बोलता है,

आधा सच—

जानती हैं सब भेद

ख़यालों में लड़कियाँ

ख़यालों के बाहर उन्हें होश रहता है

कि वह ख़यालों से बाहर हैं

कि उनके साथ-साथ जो चलता है

वह घर नहीं,

दुस्स्वप्न है घर का

ख़यालों से बाहर लड़कियाँ

टकराती हैं आदमी से

किसी सड़क पर, रेस्तराँ में,

किसी तीसरे के घर

खाने के बुलावे पर!

एक गंध उन्हें ले जाती है

एक दूसरे के रू-ब-रू

किसकी गंध है यह?

घर की?

लड़कियाँ जानती हैं,

अब वे इतनी सिरफिरी नहीं

कि इस गंध के पीछे खिंची चली जाएँ,

जानती हैं वे

कि उनके चाहते, चाहते

आदमी उनसे स्वतंत्र भी

एक सपना देखेगा,

कि एक रहस्य उसका ऐसा होगा

जिसे वह कभी नहीं खोल पाएँगी—

प्रेम से, ईर्ष्या से, ज़िद से!

विलाप करती हैं तब लड़कियाँ

अपने खोए भोलेपन के लिए

और निकल आती हैं सड़कों पर

विलाप करती हैं लड़कियाँ

हैरान होते हैं लोग

अपना भेद छुपातीं

हँसने लगती हैं लड़कियाँ

देखते हैं लोग

हैरानी में

रोने में

हँसी में

ख़यालोंं तक में नहीं बचते उनके घर।

स्रोत :
  • पुस्तक : एक दिन लौटेगी लड़की (पृष्ठ 34)
  • रचनाकार : गगन गिल
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 1989

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