ख़तरनाक है लौटना

khatarnak hai lautna

अनुराधा सिंह

अनुराधा सिंह

ख़तरनाक है लौटना

अनुराधा सिंह

ख़तरनाक थे सिद्धार्थ, बुद्ध वे बाद में हुए

ख़तरनाक है दरवाज़ा खुला छोड़ कर जाने वाला हर व्यक्ति

या सोचना उसके बारे में जो ‘विदा’ कहे बिना चला गया

क्योंकि वह लौटेगा फागुन में बरसात की तरह

ख़ुशहाल वैशाख की संभावनाएँ ध्वस्त करता हुआ

आदमी बस उतना ही

ज़िंदा रहना चाहिए जितना हमारे भीतर है

उससे पहले और बाद के आदमी के

बारे में जानना ख़तरनाक है

जानते तो हो कि ख़तरनाक होते हैं मंच से किए गए वायदे

मान लो कि उससे भी अधिक ख़तरनाक है

भीड़ में खड़े आदमी के शब्दों पर विश्वास करना

हर अपराध संविधान में सूचीबद्ध नहीं हो सकता

फिर भी ख़तरनाक हैं वे लोग जो

ग़लतियाँ इसलिए करते हैं कि उनका दंड निश्चित नहीं।

स्रोत :
  • रचनाकार : अनुराधा सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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