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कविगण कविताओं से डरते हैं

kawigan kawitaon se Darte hain

गगन गिल

अन्य

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गगन गिल

कविगण कविताओं से डरते हैं

गगन गिल

कविगण लड़कियों की कविताओं से डरते हैं

कविगण लड़कियों की कविताओं से क्यों डरते हैं?

ऐसा तो कुछ नहीं होता

लड़कियों की कविताओं में

उनकी कविताओं में तो बस

थोड़ी-सी वे ख़ुद होती हैं,

थोड़ी-सी उस सवाल की छाया

जो उनकी हस्ती की पकड़ में नहीं आता,

थोड़ी-सी उनकी चाह होती है,

थोड़ा-सा उनका वहशीपन,

थोड़ी-सी उनकी देह की गंध

थोड़ा-सा उनकी आत्मा का शोक

कभी-कभार चली आती है उनमें

एक स्वप्न या दुस्स्वप्न की छाया

कहीं कविगण उस छाया से तो नहीं डरते?

उस स्वप्न या दुस्स्वप्न में

थकान होती है उस औरत की

जिसका प्रेम नहीं समझा उसके प्रेम ने,

हताशा होती है उस औरत की

जो बराबर नहीं हो पाई अपने प्रेम के—

प्रेम में, वहशत में

उस स्वप्न या दुस्स्वप्न में

अकेलापन होता है उस औरत का

जो बैठ गई है हारकर

अपनी ही छाया में,

लेकिन जो लील लिए जाने से पहले

निकल आएगी एक दिन बाहर

अपनी छाया से, अपनी कविता से

कविगण नहीं डरते अकेलेपन से

हताशा से

कहीं वे इस प्रेम से तो नहीं डरते

जिसके इंतज़ार में उनकी औरतें

थक कर बूढ़ी हो रही हैं?

स्रोत :
  • पुस्तक : एक दिन लौटेगी लड़की (पृष्ठ 39)
  • रचनाकार : गगन गिल
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 1989

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