इसी काया में मोक्ष

isi kaya mein moksh

दिनेश कुशवाह

दिनेश कुशवाह

इसी काया में मोक्ष

दिनेश कुशवाह

बहुत दिनों से मैं

किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ

जिसे देखते ही लगे

इसी से तो मिलना था

पिछले कई जन्मों से।

एक ऐसा आदमी जिसे पाकर

यह देह रोज़ ही जन्मे, रोज़ ही मरे

झरे हरसिंगार की तरह

जिसे पाकर मन

फूलकर कुप्पा हो जाए।

बहुत दिनों से मैं

किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ

जिसे देखते ही लगे

अगर पूरी दुनिया अपनी आँखों नहीं देखी

तो भी यह जन्म व्यर्थ नहीं गया।

बहुत दिनों से मैं

किसी को अपना कलेजा

निकालकर दे देना चाहता हूँ

मुद्दतों से मेरे सीने में

भर गया है अपार मर्म

मैं चाहता हूँ कोई

मेरे पास भूखे शिशु की तरह आए

कोई मथ डाले मेरे भीतर का समुद्र

और निकाल ले सारे रतन।

बहुत दिनों से मैं

किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ

जिसे देखते ही

भक्क से बर जाए आँखों में लौ

और लगे कि दीया लेकर खोजने पर ही

मिलेगा धरती पर ऐसा मनुष्य

कि पा गया मैं उसे

जिसे मेरे पुरखे गंगा में नहाकर पाते थे।

बहुत दिनों से मैं

जानना चाहता हूँ

कैसा होता है मन की सुंदरता का मानसरोवर

छूना चाहता हूँ तन की सुंदरता का शिखर

मैं चाहता हूँ मिले कोई ऐसा

जिससे मन हज़ार बहानों से मिलना चाहे।

बहुत दिनों से मैं

किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ

जिसे देखते ही लगे

करोड़ों जन्मों के पाप मिट गए

कट गए सारे बंधन

कि मोक्ष मिल गया इसी काया में।

स्रोत :
  • पुस्तक : इसी काया में मोक्ष (पृष्ठ 9)
  • रचनाकार : दिनेश कुशवाह
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2013

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