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हम लड़कियाँ

hum laDkiyan

सुनीता

अन्य

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सुनीता

हम लड़कियाँ

सुनीता

पहली बार जब मुझे आई थी माहवारी

अम्मा ने कहा कि बच्चा रुकने का ख़तरा है

मन में एक सवाल आया था कि

माहवारी का बच्चा रुकने से क्या संबंध?

उस वक़्त कुछ समझ में कहाँ आया था

अम्मा ने सबकी नज़रों से बचकर

टाटी का ढाई बन्हा कटवाया था

अब मेरे स्कूल जाने और आने का वक़्त तय होने लगा था

रास्ते लंबे और लंबे होते जा रहे थे

मेरी दुनिया से लड़के ग़ायब कर दिए गए

और कुछ ‘मनचली’ लडकियाँ भी

मेरी सुबहें जल्दी और जल्दी होती जा रही थीं

मैं अम्मा की जगह लेने लगी थी

मेरे गाँव की लड़कियाँ ब्याही जा चुकी थीं

और मैं स्कूल अकेली जाने लगी थी

उन दिनों मैं रास्ते में अकेली

एकदम अकेली होती जा रही थी

और गाँव वाले कहते थे कि

पढ़ने वाली लडकियाँ होती हैं रंडी

मेरी छठवीं कक्षा की दोस्त कनीज़ कहा करती थी कि

अच्छी लड़कियाँ रास्ते में नज़रें झुकाकर चलती हैं

और ज़ोर-ज़ोर से हँसना भी ठीक नहीं

रास्ते के किनारे शौच को बैठा पुरुष हिलाता अपना लिंग

मैं डरती और डरती चली जा रही थी

हम सहेलियाँ अपने मन का प्रेम तो छुपा लेती थीं

पर माहवारी की तारीख़ें नहीं

हमें याद है उन दिनों एक-दूसरे को ढकते हुए चलना

मेरी सहेलियाँ जो सवर्ण थीं

नहीं होता था फ़र्क़ मेरे और उनके दर्द में

उन मुश्किल दिनों में

वे भी होती थीं एकदम अकेली

रसोई में तो सख़्त मनाही थी

सर्दियों में भी चटाई पर सोती थीं

मुझे याद है कि उन दिनों

काम करने के कारण

मुझे कई बार पड़ती थी मार

आज भी हम डरते हैं उस दाग़ से

मेरे अंदर से रिसता ख़ून

उतर आया है मेरे चेहरे पर

मानो दाग़ हुआ अपराध हो

और हम अपराधी!

स्रोत :
  • रचनाकार : सुनीता
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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