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घर को वापस लौटते लोगों के पाँव

ghar ko vapas lautte logon ke paanv

अनुवाद : चंद्रबली सिंह

एमिली डिकिन्सन

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एमिली डिकिन्सन

घर को वापस लौटते लोगों के पाँव

एमिली डिकिन्सन

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    घर को वापस लौटते लोगों के पाँव
    पहले से प्रसन्नतर जूतों में जाते हैं—
    केसर के पौधे अपने जागरण के पूर्व
    हिम के दास होते हैं—
    प्रभु की स्तुति करते हुए अधर
    वर्षों से अभ्यस्त रहे
    यहाँ तक कि धीरे-धीरे चलते नाविक
    तटों पर गाते हुए चलने लगे।

    मुक्ताफल ग़ोताख़ोरों का अकिंचन धन होते हैं
    जिन्हें वे सागर से बलात् खींच लाते हैं—
    डैने—उन देवदूतों के वाहन हैं
    एक समय जो—हमारी तरह—पाँवों पर चलते रहे
    रात्रि प्रातः का फ़लक होती है
    ठगविज्ञा—रिक्थ—
    मृत्यु सिर्फ़ हमारे ध्यान का
    अमरता पर हो जाना केंद्रित।

    मेरे अंक मुझे नहीं बता पाते हैं
    वह गाँव कितनी दूर—
    जिसके किसान देवदूत होते हैं—
    जिसके प्रभाग नभ में यत्र-तत्र हैं स्थित—
    मेरे गौरवग्रंथ अपना मुँह ढँक लेते—
    मेरी आस्था उस अँधकार की करती पूजा
    जो अपने भव्य संघारामों से
    ऐसे पुनर्जीवन की वर्षा करता।

           
    स्रोत :
    • पुस्तक : एमिली डिकिन्सन की कविताएँ : संचयन (पृष्ठ 16)
    • रचनाकार : एमिली डिकिन्सन
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 2011

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