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गेहूँ का अस्थि विसर्जन

gehun ka asthi wisarjan

अखिलेश श्रीवास्तव

अखिलेश श्रीवास्तव

गेहूँ का अस्थि विसर्जन

अखिलेश श्रीवास्तव

खेतों में बालियों का महीनों

सूर्य की ओर मुँह कर खड़ा रहना

तपस्या करने जैसा है

उसका धीरे-धीरे पक जाना है

तप कर सोना बन जाने जैसा।

चोकर का गेहूँ से अलग हो जाना

किसी ऋषि का अपनी त्वचा को

दान कर देने जैसा है।

जलते चूल्हे में रोटी का सिंकना

गेहूँ की अंत्येष्टि जैसा है

रोटी के टुकड़े को अपने मुँह में एकसार कर

उसे उदर तक तैरा देना

गेहूँ का गंगा में अस्थि विसर्जन जैसा है।

इस तरह

तुम्हारे भूख को मिटा देने की ताक़त

वह वरदान है

जिसे गेहूँ ने एक पाँव पर

छह महीना धूप में खडे़ होकर

तप से अर्जित किया था सूर्य से।

भूख से

तुम्हारी बिलबिलाहट का ख़त्म हो जाना

गेहूँ का मोक्ष है।

इस पूरी प्रक्रिया में कोई शोर नहीं हैं

कोई आवाज़ नहीं हैं

शांत हो तिरोहित हो जाना

मोक्ष का एक अनिवार्य अवयव है।

मैं बहुत वाचाल हूँ

बिना चपर-चपर की आवाज़ निकाले

एक रोटी तक नहीं खा सकता।

स्रोत :
  • रचनाकार : अखिलेश श्रीवास्तव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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