पहली विमान यात्रा

pahli viman yatra

लक्ष्मीकांत मुकुल

लक्ष्मीकांत मुकुल

पहली विमान यात्रा

लक्ष्मीकांत मुकुल

रनवे पर तेज़ दौड़कर उड़ा विमान

जैसे डेग-डेग भरता नीलाक्ष

चोंच उठाए पंख फैलाए उड़ जाता है आकाश की ओर

खिड़की से नज़र आते हैं उँचे मकान, पेड़, सड़कें

नन्हें खिलौनों की शक्ल लेते हुए

जैसे पहाड़ की ऊँचाई पर जाते ही

दिखते हैं तस्तरी के आकार के बड़े खेत

डिब्बी की तरह ताल-तलैए, चीटियों जैसी भेड़-बकरियाँ

धरती को बहुत पीछे छोड़ता हुआ विमान

अपने डैने आड़ी तिरछी करते लेता है दिशा बदलने को मोड़

वैसे ही रास्ते चलते हम घूम जाते हैं तिरछी पगडंडी पर

दोपहा, बनडगरा की ओर

तैतीस हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर उड़ते जहाज़ की खिड़की से

झाँकता हूँ सामने नीचे की तरफ़

दिखती हैं स्याह धुँध के बीच कहीं

डोरी-सी घुमावदार रेखाएँ

वह नदियाँ होंगी, हमारे दिलों में

पवित्रता-निर्मलता का भाव लिए

कहीं दिख जाते मेघ पुष्पों के समूह-श्वेताभ, नीलाभ, धुनी रुई-सा सफ़ेद बादल

कहीं नज़र आती पहाड़ियाँ

कुहरे की नीली साड़ी में लिपटी हुईं

कहीं पर्वतों के उतुंग शिखर बादलों से

ग़लबहियाँ करते हुए

तो कहीं दिख जाती कोई तपस्विनी-सी शाँत हिमाच्छादित पर्वतमालाएँ

ऊपर से तानी हुई बादलों की श्वेत छतरियाँ

जब कभी बादलों से टकराता विमान, छर से भीग जाते डैने

भीग जाते यात्री-मन के अंतस

तभी बीच में आकर शहद-सी मीठी आवाज़ में

कुछ कहती हैं परिचारिकाएँ

मुस्कुराते होठों, चहकती आँखों से

साँय-साँय की ध्वनियों में फुसफुसाती हुई

शफ़्फ़ाफ़ सुफ़ैद मोगरे-सी खिल-खिलाती

रात्रि के प्रहर में उड़ते विमान से

कहीं-कहीं दिख जाती है

खिड़की से नीचे झाँकते हुए टिम-टिमाती बत्तियाँ

जैसा अँधियारी रात में नज़र आता है

तारों भरा आकाश

अँधेरे में लैंडिंग करते हुए लॉग शॉट बिंबों की तरह

नज़र आते हैं तुम्हें महानगर

जगमगाते, चमकते, चकाचौंध करते हुए

भ्रमित करते हुए, अज्ञात भय

पैदा करते हुए तुम्हारे भीतर

जैसे हाइवे पर चलते हुए कोई पदयात्री

पीछे से आती तेज़ गाड़ी की आहट पाते ही

बढ़ जाता है फुटपाथ की ओर!

स्रोत :
  • रचनाकार : लक्ष्मीकांत मुकुल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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