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कानपुर की एक मेहतर बस्ती में रहने के दिन याद करते हुए

kanpur ki ek mehtar basti mein rahne ke din yaad karte hue

दिनेश कुशवाह

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दिनेश कुशवाह

कानपुर की एक मेहतर बस्ती में रहने के दिन याद करते हुए

दिनेश कुशवाह

 

गोपाल प्रधान के लिए

रखा गया इन्हें कुछ ऐसे 
कि उन्हें पता ही न चले 
कि वे किस नरक में रह रहे हैं।

कुंभीपाक का रौरव कुछ भी 
नहीं होगा इतना भयानक 
जिस नरक से यहाँ जूझते हैं लोग 
माँ-बहन-बेटी-बीवी के साथ।

सिर्फ़ इन्होंने देखा है 
कैसी होती है पीब-ख़ून-पेशाब और मैले की नदी।

यहाँ लोग बोतल से करते हैं 
वैतरणी पार, वाराह की पीठ पर हाथ रख 
सुस्ताते हैं दो घड़ी।

एक अंधे कुएँ में पड़े हैं ये लोग 
प्राणलेवा छटपटाहटों के साथ 
सोए बिना रात-दिन।

यहाँ विष्णु का पीतांबर और
ब्रह्मा का अंगवस्त्रम् धोता है जो 
वह भी है नरक का प्राणी
तांत्रिक अभिचारियों की गाली सुनता हुआ 
इस नरक में भी अप्सराएँ तलाशते हैं कुलीन 
अपनी शव-साधना के लिए।

यहाँ आरे से चीरे जाते हैं लोग 
पेरे जाते हैं कोल्हू में 
यहाँ जीते हैं लोग 
अपने पेट में पचाते हुए 
धरती का हैज़ा।

स्रोत :
  • पुस्तक : इसी काया में मोक्ष (पृष्ठ 36)
  • रचनाकार : दिनेश कुशवाह
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2013

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