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इसकी मुझको लाज नहीं है

iskii mujhko laaj nahii.n hai

हरिवंशराय बच्चन

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हरिवंशराय बच्चन

इसकी मुझको लाज नहीं है

हरिवंशराय बच्चन

और अधिकहरिवंशराय बच्चन

    मैं सुख पर सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है।

    जिसने कलियों के अधरों में

    रस रक्खा पहले शरमाए,

    जिसने अलियों के पंखों में

    प्यास भरी वह सिर लटकाए,

    आँख करे वह नीची जिसने

    यौवन का उन्माद उभारा,

    मैं सुख पर, सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है।

    मन में सावन-भादों बरसे,

    जीभ करे, पर, पानी-पानी!

    चलती-फलती है दुनिया में

    बहुधा ऐसी बेईमानी,

    पूर्वज मेरे, किंतु, हृदय की

    सच्चाई पर मिटते आए,

    मधुवन भोगे, मरु उपदेशे मेरे वंश रिवाज़ नहीं है।

    मैं सुख पर, सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है।

    चला सफ़र पर जब तक मैंने

    पथ पूछा अपने अनुभव से,

    अपनी एक भूल से सीखा

    ज़्यादा, औरों के सच सौ से,

    मैं बोला जो मेरी नाड़ी

    में डोला, जो रग में घूमा,

    मेरी नाड़ी आज किताबी नक़्शों की मोहताज नहीं है।

    मैं सुख पर, सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है।

    अधरामृत की उस तह तक मैं

    पहुँचा विष को भी चख आया,

    और गया सुख को पिछुआता

    पीर जहाँ वह बनकर छाया,

    मृत्यु गोद में जीवन अपनी

    अंतिम सीमा पर लेटा था,

    राग जहाँ पर, तीव्र अधिकतम है, उसमें आवाज़ नहीं है।

    मैं सुख पर, सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बच्चन के लोकप्रिय गीत (पृष्ठ 98)
    • रचनाकार : हरिवंशराय बच्चन
    • प्रकाशन : हिंद पॉकेट बुक्स
    • संस्करण : 2004

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