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स्वामी अशोकानंद

1893 - 1969

स्वामी अशोकानंद के उद्धरण

वास्तव में व्यक्ति में स्नेह, मधुरता, मृदुलता की मात्रा ही उसके विकास का मापदंड है। जग में स्नेह तथा उस पर आधारित मधुरता, मृदुलता उसी प्रेम रूप, मधु रूप, रस रूप भगवान की अभिव्यक्ति है। उसी के स्नेह, मधुरता मृदुलता, का प्रतिबिंब है। अतः यही उसके नैकट्य की द्योतक भी है।

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