1896 - 1961 | मिदनापुर, पश्चिम बंगाल
छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। समादृत कवि-कथाकार। महाप्राण नाम से विख्यात।
दुःख को देवता समझो।
जितने भी धर्म प्रचारित किए गए, सब अपनी व्यापकता तथा सहृदयता के बल पर फैले।
बिना इंद्रियों को जीते धर्माचरण निष्फल है।
नेता? नेता कौन है? मनुष्य? एक मनुष्य सब विषयों की पूर्णता पा सकता है? 'न। इसीलिए नेता मनुष्य नहीं। सभी विषयों की संकलित ज्ञान-राशि का नाम नेता है।
साथ निवास करने वाले दुष्टों में जल तथा कमल के समान मित्रता का अभाव ही रहता है। सज्जनों के दूर रहने पर भी कुमुद और चंद्रमा के समान प्रेम होता है।
बिल्लेसुर बकरिहा
चाबुक
देवी
गीतिका
लिली
प्रबंध पद्म
1934
प्रभावती
1945
सुकुल की बीबी
1941
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