निर्मल वर्मा का आलोचनात्मक लेखन
उपन्यास की मृत्यु और उसका पुनर्जन्म
अर्से से हम यह अफ़वाह सुनते आए हैं कि उपन्यास ने अपना चोला छोड़ दिया है, लेकिन हज़ारों की संख्या में उपन्यास अब भी लिखे जाते हैं। शायद ही किसी विधा को मरने में इतना समय लगा हो जितना उपन्यास को। यद्यपि उसकी मृत्य की भविष्यवाणियाँ समय-समय पर होती रहती
संस्कृति, समय और भारतीय उपन्यास
हम भारतीय लेखक उस विधा के बारे में बहुत कम सोचते हैं, जिसे स्वयं अपने सृजन के लिए चुनते हैं। हमारे ‘विधा' महज़ माध्यम हैं, लक्ष्य कुछ हैं और साहित्य, समाज, दर्शन। इसलिए 'साहित्य' साहित्य की रचना करते हैं। हम यह नहीं सोचते कि लेखक की नैतिकता उसके विचारों
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere