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लाला लाजपत राय

1865 - 1928 | पंजाब

लाला लाजपत राय की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 3

गरिमापूर्ण मृत्यु के लिए मनुष्य को पहले गरिमापूर्ण ढंग से जीना सीखना चाहिए। वही मृत्यु भव्य है जो भली प्रकार जिए गए जीवन अर्थात् सिद्धांतों के लिए, मातृभूमि के लिए और मानवता के लिए जिए गए जीवन के प्रासाद का शिखर बनती है।

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किसी भी धर्म-मत को आदर्श निर्दोष बनने के लिए मानव-स्वभाव के उन सभी पक्षों के सामंजस्यपूर्ण विकास की पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए, जो उसके भौतिक जीवन के आधार का निर्माण करते हैं, सामाजिक पक्ष की उपेक्षा तो वह कर ही नहीं सकता।

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धर्म चिंतन मात्र नहीं है, अपितु चिंतन और आचरण है।

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