अज्ञेय के संस्मरण
जेल के दिन
समय की दूरी सभी अनुभवों को मीठा कर देती है, तात्कालिक परिस्थिति में भले ही वे कितनी ही तीखी और कटु हो। इसलिए आज यह कहना अनुचित न होगा कि जेल की मेरी स्मृतियाँ मधुर ही मधुर है—उन अनुभवों की भी जो तब भी मीठे थे, और उन की भी जो उस समय अपनी कटुता के कारण
वसंत का अग्रदूत
'निराला' जी को स्मरण करते हुए एकाएक शांतिप्रिय द्विवेदी की याद आ जाए, इसकी पूरी व्यंजना तो वही समझ सकेंगे जिन्होंने इन दोनों महान विभूतियों को प्रत्यक्ष देखा था। यों औरों ने शांतिप्रियजी का नाम प्राय: सुमित्रानंदन पंत के संदर्भ में लिया है क्योंकि
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere