सियारामशरण गुप्त की कहानियाँ
काकी
उस दिन बड़े सवेरे जब श्यामू की नींद खुली तब उसने देखा—घर भर में कुहराम मचा हुआ है। उसकी काकी उमा एक कंबल पर नीचे से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए भूमि-शयन कर रही हैं, और घर के सब लोग उसे घेरकर बड़े करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं। लोग जब उमा को श्मशान
झूठ-सच
तीसरे खंड के कमरे में सामने की खिड़की खोलकर लिखने बैठता हूँ; कुछ दूर एक घर की छत पर कई दिन से एक दीवार उठ रही है। यहाँ एक राज है और एक मजूर स्त्री। इस जगह से दोनों काम करते दिखाई देते हैं। कभी-कभी एक तीसरा आदमी दिखाई पड़ता है,—मकान मालिक। रंग-ढंग से
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere