प्रियंवदा देवी के उद्धरण

मैं आकाश के आलोक में तुम्हें पकड़ नहीं पाती, पकड़ नहीं पाती, मन में मिलाकर अपना नहीं पाती। तुमको पकड़ नहीं पाती, पकड़ नहीं पाती, चाहे जितना भी प्यार करूँ।
तुमको मैं बाँध नहीं पाती, बाँध नहीं पाती, नित्य नवीन छंदों में गूँथ नहीं पाती। हे मेरे प्यार, तुमकों मैं बाँध नहीं पाती, हाय, भाव को रूप नहीं दे पाती, वैसी भाषा ही मेरे पास नहीं है।
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