कृपाराम की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 10
अरुन नयन खंडित अधर, खुले केस अलसाति।
देखि परी पति पास तें, आवति बधू लजाति॥
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ऐसी आजु कहा भई, मो गति पलटे हाल।
जंघ जुगल थहरत चलत, डरति बिसूरति बाल॥
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सुरत करत पाइल बजै, लजै लजीली भूरि।
ननद जिठानी की सखी, हाँसी हिए बिसूरि॥
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एक ब्रह्ममय सब जगत, ऐसे कहत जु बेद।
कौन देत को लेत सखि, रति सुख समुझि अभेद॥
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कछु जोबन आभास तें, बढ़ी बधू दुति अंग।
ईंगुर छीर परात में, परत होत जो रंग॥
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