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इवान तुर्गनेव

1818 - 1883 | ओरयोल

इवान तुर्गनेव की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 1

प्रकृति के द्वार पर कितना भी खटखटाओ, वह कभी बोधगम्य शब्दों में तुम्हें उत्तर नहीं देगी।

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