गुरु तेग़ बहादुर की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 54
धन दारा संपत्ति सकल, जिनि अपनी करि मानि।
इन में कुछ संगी नहीं, नानक साची जानि॥
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विरध भइओ सूझै नहीं, काल पहुँचिओ आन।
कहु नानक नर बावरे, किउ न भजै भगवान॥
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घटि-घटि मैं हरि जू बसै, संतन कह्यो पुकारि।
कह नानक तिह भनु मना, भउ निधि उतरहि पारि॥
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तनु धनु संपै सुख दिओ, अरु जिह नीके धाम।
कह नानक सुनु रे मना, सिमरत काहे न राम॥
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तरनापो इउँही गइओ, लिइओ जरा तनु जीति।
कहु नानक भजु हरि मना, अउधि जाति है बीति॥
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