गुरु अमरदास की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 11
आपै नो आपु मिली रहिआ, हउमै दुविधा मारि।
नानक नामि रते दुतरु तरे, भउ जलु विषमु संसारु॥
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विसना कदे न चुकई, जलदी करे पुकार।
नानक बिनु नावै कुरूपि कुसोहणी, परहरि छोड़ी भतारि॥
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आसा मनसा जगि मोहणी, जिनि मोहिआ संसारू।
सभु को जमके चीरे बिचि है, जेता सभु आकारु॥
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सबदि रती सोहागणी, सतिगुर कै भाइ पिआरि।
सदा रावे पिवु आपणा, सवै प्रेमि पिआरि॥
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हसा वेषि तरंदिआ, वगांभि आया चाउ।
डूबि मुए वग वपुड़े, सिरु तलि उपरि पाउ॥
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