दिवाकर मुक्तिबोध के संस्मरण
वे कहीं गए हैं, बस आते ही होंगे
‘शिष्य। स्पष्ट कह दूँ कि मैं ब्रह्मराक्षस हूँ किंतु फिर भी तुम्हारा गुरु हूँ। मुझे तुम्हारा स्नेह चाहिए। अपने मानव जीवन में मैंने विश्व की समस्त विद्या को मथ डाला, किंतु दुर्भाग्य से कोई योग्य शिष्य न मिल पाया कि जिसे मैं समस्त ज्ञान दे पाता। इसलिए मेरी
उनके वे सबसे अच्छे दिन
मुक्तिबोध जन्मशताब्दी वर्ष की शुरूआत 13 नवंबर 2016 से हो चुकी है। एक बेटे के तौर पर बचपन एवं किशोर वय की ओर बढ़ते हुए हमें उनके सान्निध्य के करीब 10-12 वर्ष ही मिले। जन्म के बाद शुरू के 5-6 साल आप छोड़ दीजिए क्योंकि यादों के कुछ पल, कुछ घटनाएँ ही आपके
प्लीज़ कम सून, बाबा
ज़िंदगी में कुछ ख़ास तिथियाँ होती हैं जो ताउम्र साथ चलती हैं—शोक व आह्लाद की तिथियाँ। अतीत में खो जाने की तिथियाँ, यादों को ताज़ा करके प्रफुल्लित होने की तिथियाँ या फिर गहरे शोक में डूब जाने की तिथियाँ। 11 सितंबर 1964, 08 जुलाई 2010, 29 जनवरी 2012, 7
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere